बस स्टैंड
बस स्टैंड रात के करीब 11:30 बजे थे और तुषार एक और यादगार हसीन शाम का लुफ़्त उठाकर लोट रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी थरथरी उठ रही थी। रात काफी हो चुकी थी। सर्द और तेज़ हवाएं चल रही थी और चाँद जैसे बादलों के साथ लुका छुपी खेल रहा था और हवा जैसे एक बैचैन दर्शक की तरह बस झूम रही थी पर इन सब के बीच वो तुषार को सिकुड़ने पर मज़बूर जरूर कर रही थी। तुषार घर जाने के लिए बस स्टैंड पर खड़ा होकर बस के...