बस स्टैंड


बस स्टैंड
रात के करीब 11:30  बजे थे और तुषार  एक और यादगार हसीन  शाम  का  लुफ़्त   उठाकर  लोट रहा था।  उसके     शरीर में  एक अजीब सी थरथरी उठ रही थी।  रात  काफी   हो  चुकी  थी।  सर्द  और  तेज़   हवाएं   चल  रही थी   और  चाँद  जैसे   बादलों   के  साथ   लुका   छुपी   खेल  रहा  था  और  हवा   जैसे   एक   बैचैन   दर्शक  की  तरह  बस  झूम   रही   थी  पर   इन  सब   के   बीच  वो    तुषार   को   सिकुड़ने   पर  मज़बूर  जरूर  कर   रही थी।  तुषार   घर  जाने  के  लिए  बस  स्टैंड  पर  खड़ा  होकर  बस  के  आने  का  इंतज़ार कर  रहा था , उसके  अलावा  एक  लड़की  और  एक  आदमी  भी  स्टैंड  पर  खड़े  थे।
स्टैंड  पर  खड़े   थोड़ी  देर  ही  हुई  थी   की  पास  खड़ी लड़की  खिसकती  हुई  तुषार  की  तरफ  आयी  फिर  थोड़ा  अकबकाकर    रुक सी  गयी  लेकिन  अगले  ही  क्षण  दोबारा  आगे  बढ़ते  हुए  उससे  बोली - "भैया, आप  कहाँ   जाओगे।"

 तुषार  ने    बादलों   से  नज़र   हटाई   ओर   उस   लड़की   की   तरफ   देखा   वो  एक चश्मा  पहने   हुए  थी   और  उसके  चेहरे  पर चिंता  की  लकीरे  साफ़  दिख  रही  थीं।
 "मैं  तो  यमुना  विहार  जाऊंगा।" तुषार    ने  आदतन  कुछ  समय  लेने   के  बाद  कहा।
"क्या  आपको  पता  है  वज़ीराबाद  कौनसी  बस  जाएगी। "
तुषार ने  थोड़ा  टटोलते  हुए  बोला "971  और  शायद  108, हाँ , 234 भी  जाएगी। "
पास  खड़े   हम  दोनो  के  अलावा  आदमी  अपनी  चुप्पी  तोड़ते  हुए  बोला -"ये  टाइम  ऐसा  ही है घंटो  तक  बस  नहीं  आती  यदि  जल्दी  जाना  है  तो  रिक्शा  सही  है। "
"नहीं , आ  जाएगी। "  तुषार   ने  भरोसा  जताते  हुए  कहा।
"हाँ  आने  को  तो  अभी  आ  जाये  पर  कभी  कभी  घंटो   तक  नहीं  आती  इसलिए मै  कह  रहा  था  रिक्शा  ले  लो  यदि  जल्दी  जाना  है तो। "
"नहीं, मैं  अकेले  नहीं  जाऊगी। " यह  कहते  हुए  उस  लड़की  की  सारी  चिंता  की  लकीरें  जैसे  माथे  की  सिकुड़न  से  उसकी  आवाज़  के  जरिए  झलक  उठी।
कुछ  क्षण  बाद  एक  दबी  सी आवाज़  मैं   लड़की  ने  तुषार   से  कहा - "भैया  आप  चलो  ना  मेरे साथ  रिक्शा में    ,वज़ीराबाद  से  आप  दूसरी  रिक्शा  ले  लेना। "
"नहीं ,   आती  ही  होगी  कोई  ना  कोई  बस   चिंता  की  कोई  बात  नहीं। " तुषार  ने  बस  पर  अपना  अटूट  विश्वास  जताते  हुए  कहा।
"वैसे  मुझे  उधर  ही   जाना  है  तो  आप  मेरे  साथ  चल  सकती  है,  मैं  भी  रिक्शा  ले  लूँगा। " आदमी  बोला।
लड़की  ने  थोड़ा  हिचकिचाते हुए  एक  कदम  रिक्शा की तरफ  बढ़ाया  पर  फिर  ना  जाने  क्यों  उसने  अपने   पैर   दोबारा   वापिस  खींच  लिए।
5   मिनट और  बीत  चुके  थे  पर  ये   वक़्त  बड़ा  लंबा  महसूस  हो  रहा  था।  माहौल  शांत  था  बस बीच - बीच  में  कुछ  आती - जाती  गाड़ियों  की आवाज़े  आ  रही थी ; अब तीन  में से  केवल एक  रिक्शा रह  गयी  थी  और  वो  लड़की  पहले  से  ज्यादा  बेचैन  और  परेशान  लग  रही  थी।  माहौल  की  चुप्पी  को  तोड़ते  हुए   एक  कोमल  सी  आवाज़  में  लड़की  ने  तुषार   से  कहा -"चलो  ना  भैया  प्लीज। "
आवाज  इतनी  कोमल  थी  की  इस  बार  तुषार   पिंघलने  से  नहीं  बच  सका।  वो  कुछ  कह  तो  ना  सका  पर  बस  थोड़ा  मुस्कराकर  गर्दन  हिलाई  और  पास खड़ी  रिक्शा  की  तरफ  चलने  लगा।  वह  आदमी  पहले  से  ही  वहाँ  खड़ा  था।  पास  जाकर  रिक्शावाले  से  पैसे  के  बारे  में  पूछा  तो  उसने  रोज़  से  दो  गुने  ज्यादा  किमत  बताई।  वैसे  तुषार  आसानी  से  जेब  खाली  करने  वालो  में से  नहीं  था  पर  पता नहीं  क्यों  आज  यह  भी  चमत्कार  होना  ही  था  उसने  तुरंत  हामी  भर  ली ।  सब  रिक्शा  में  बैठे  ही  थे  की  तुषार   को  बस  के  आने  की  आहट  आई।  हाँ  यह  एक  बस  ही  थी  फिर  क्या  था  तीनो  झट  से  रिक्शा  से  उतरे  और  बस  लपक  ली। 

बस  में  चढ़ने  के  बाद  तुषार ने  तुरंत  ही  एक  सीट  लपक  ली। फिर  कनखियों  से  उस  लड़की की  तरफ  देखा  और  जरा  मुस्करा दिया  शायद  जो  भरोसा उस लड़की  ने  तुषार पर  दिखाया  जो  शायद  ही  कभी  किसी  ने  दिखाया  हो  ये उसका ही  जवाब  था। और  इस  तरह  बस  स्टैंड  एक  बार  फिर  से   खामोश  हो  उठा।   हाँ  उसे  एक   बार  फिर  इंतज़ार  करना  होगा  एक   मुशाफिर का।

An  Original Story  by  Sagar Sharma

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