एक अजीब सफ़र किताबों के साथ
एक अजीब सफ़र किताबों के साथ
तो कहानी शुरु होती है करीब 2 साल पहले जब मेरे पास पहली बार internet का direct access आया। क्योंकि मुझे पता नहीं था कि मुझे जाना किधर है इसलिए मैं करीब 1 साल तक घूमता रहा इधर से उधर बिल्कुल एक बेरोगज़र की तरह। फिर मुझे समझ आया की यहां दो चीज है - शबाब प्यास बुझाने को और knowledge भूख मिटाने को। तो क्योंकि मैं प्यासा नहीं था, मै भूखा था इसलिए मैने खाना शुरु कर दिया knowledge को , हाँ कभी कभी प्यास भी मिटा लेता था। तो काहनी में twist आया जब मुझे पता चला कि खाना भी दो तरह का था और शायद में काफी दिनों से non- veg खा रहा था और मुझे इसकी भनक भी नहीं थी वो तो शुक्र है उस 1869 में जन्म लिए मनुष्य का जिसने मुझे इसका आभास कराया। तो इस तरह मैं निकल पड़ा एक शुद्ध शकहरी भोजन की तालाश में , कई दिनों की तालाश के बाद मेरी खोज आखिरकार ख़त्म हुई इस एक चीज पर - Book। तो अगले कुछ महीनो तक मैं बेफिक्र खाता रहा और मेंने कभी सोचा ही नहीं था कि मुझे कभी हल्का भी होना पड़ेगा, खेर मेंने इसका भी हल ढूंढ ही लिया। अब में किसी को भी पकड़ता और knowledgeful स्पीच देता और यदि कोई नहीं मिलता तो खुद को ही लपेटे में ले लेता। कभी- कभी कोई मेरी सुनता नहीं है और मैं बोलता रहेता बस ऐसे ही शायद खुद को खाली करने के लिए या फिर पता नहीं क्यों।
कुछ दिनों तक तो मुझे लगा कि मैं अपनी ज़िंदगी कि गुत्थी को सुलझा रहा हूं फिर सब उलझता सा लगने लगा । यह सोच सोच के कि ऐसा क्यों हो रहा है में tension( not what we study in string) में आ गया । आख़िर मुझे पता चला कि बुक का कोई लेना देना नहीं है उलझने या सुलझे से ये तो बस रास्ते बताती है सुलझाने के। और में फिर इसी तरह उलझ उलझ के सुलझता रहा। ये भी काफी intresting story है।
खैर अब पीछे मुड़के देखता हूं तो मुंह खुला का खुला रहे जाता है क्योकि मेंने कभी सोचा नहीं था कि में एक दिन पढ़ता पढ़ता 25 किताबों को पढ़ लूंगा। पहले मेंने एक लाइन से शुरुआत की फिर मैं पढ़ता गया इसी तरह ,एक बुक complete की फिर दो और कारवां चलता रहा। जब भी रुकता तो साला दिमाग रुकने नहीं देता। खैर इस पूरी journey में मेरी मुलाक़ात कई तरीके के आदमियो से हुई । कोई चैंपियन था तो कोई मेरी तरह । कभी कभी तो ऐसा प्रतीत होता कि में हर जगह हू , गांधी गोखले कि बातचीत में भी और morrie और jack की बातचीत के वक़्त भी। और पता नहीं कहां कहा।
मेरा दिमाग, मैं और मेरा दिल कभी कबी बहुत बाते करते है। एक दिन यू ही दिमाग पूछता है कि तू पढ़ता क्यों है , शयाद ये बात दिल को अच्छी नहीं लगी और दिमाग से पूछने लगा कि क्या तुझे पता है कि हम जी क्यों रहे है। फिर कुछ देर तक सब चुप थे और में समझ गया कि कुछ चीज़े बेवजह ही अच्छी है। तो बस यूं ही मजे लेते रहो ज़िन्दगी का बिना वजह और अब समय है इस पहले Hinglish ब्लॉग को समेटने का।
तो ठीक है THANK YOU EVERYONE FOR JOINING ME IN MY CELEBRATION, और इसी तरह मज़े लूटते रहो ज़िन्दगी के बेवजह।



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