वो दरवाज़ा
कोरोना वायरस , दंगे और पता नहीं क्या -क्या घटित हो गया पिछले एक महीने में पर वो आज चर्चा का विषय नहीं है। मैं बस एक बात समझाना चाहता हूँ या फिर सही कहे तो समझना चाहता हूँ। हमने जिस गर्मजोशी से दो महीने पहले सुधार की तरफ अग्रसर जीवन की शुरुआत की थी ठीक उसी बेरहमी के साथ उसका अंत भी लगभग हो चुका है ; बस कुछ आग बची है ठंडे पड़ते अंगारो में जिन्हे मारना शायद इतना भी मुश्किल नहीं है। नहीं , मुझे लगता है की यह बची -कुची आग ही है जो बड़ी मुश्किल होती है बुझानी। वैसे एक नज़र से देखा जाए तो यह अंगारों में दबी आग ही है जो हमे अधमरा सा रखती है। यह ना तो कोई काम हमे ढंग से करने देती है और ना ही किसी काम को मरने ही देती है। हम बस रहते है जिंदा एक तड़प में झूलते हुए हाँ और ना की। हमारे अंदर आग है और पानी भी और हाँ इसलिए ही तो तड़प है।
आज हमारे हाथ में सपने हैं बहुत सारे, टूटे- फूटे जिनसे हम खेलना भी चाहते और उन सब से डरते भी है। और पता है क्या होता है जब आप आधे मन से कुछ करते हो ; असलियत में कुछ नहीं होता। केवल और केवल निराशा हमारे हाथ लगती है। हम सपनो को बनाते जाते है फिर वो टूटते जाते है हर दिन ठीक उसी तरह जैसे वो कभी बने थे । हम इसी तरह तड़पते रहते है हर दिन ; अचानक हमे इसकी आदत सी पड़ जाती है और हम एक रास्ता ढूंढने लगते है इससे बाहर निकलने का जिसके कारण हम और तड़पते है। फिर एक दिन तड़प हद पार करने लगती है और वो कर भी देती है उस वक़्त हम सब दरवाजे बंद कर देते है एक गहरी नींद लेने के लिए क्योकि हम थक चुके होते है एक लम्बी लड़ाई से। हम बेफिक्र हो जाते है खुद से और इस वजह से कोई चीज़ हमे फिक्रमंद नहीं कर पाती। उसके बाद हम वो सब करते है जो हमको लगता है की वो सबसे बुरा है। पर जैसे -जैसे हम उस काम को करते जाते है हमे महसूस होता है की वो इतना भी बुरा नहीं था जितना की उसे बदनाम किया गया है। दिन-प्रतिदिन हम झूलते जाते है उन बुराईओं में हाँ उन बुरे कामों में। आश्चर्य की बात नहीं है एक हमे उन कामो में ओर ज्यादा ओर ज्यादा मज़ा आने लगता है। फिर हमे समझ आता की यही तो है वो रास्ता जो हमे मोक्ष की प्राप्ति कराएगा।
वो हमारी लाइफ का एक सुनहरा पल होता है जिसमे दुःख में भी सुख और सुख में भी सुख होता है। हम अपनी मंज़िल के बहुत करीब होते है बहुत ज्यादा करीब , फिर हम सोचते है एक आखिरी बार इस दुखभरी दुनिया को देखने की। पर जैसे ही हम पीछे मुड़ते है सब बदल जाता है क्योकि तब हमे पता चलता है की हम आगे नहीं पीछे चल रहे होते है; मोक्ष के द्वार बंद हो जाते है। य ह सब इतनी जल्दी होता है की पहले तो हमारी साँसे रुकती है फिर तेज़ हो जाती है। हम खुद को सँभालते है और साँसे नार्मल करते है। हम सोचना चाहते है पर कुछ सोच नहीं पाते। अचानक हमारी नज़र उन बंद दरवाज़ों को ढूंढना शुरू कर देती है जो हमने एक लम्बी नींद लेने से पहले बंद किये थे या फिर उस दरवाज़े को जिससे हम अंदर आये थे। और बाकी की हमारी ज़िन्दगी उस एक दरवाज़े को ढूँढते हुए गुजर जाती है जिससे हम बाहार जा सके या फिर जिससे हम अंदर आये थे। शायद हम अब भी उसी दरवाज़े को ढूँढ़ रहे है; यदि नहीं ,तो शायद आप उस दरवाज़े से कभी अंदर ही नहीं आये।
WRITTEN BY SAGAR SHARMA
आज हमारे हाथ में सपने हैं बहुत सारे, टूटे- फूटे जिनसे हम खेलना भी चाहते और उन सब से डरते भी है। और पता है क्या होता है जब आप आधे मन से कुछ करते हो ; असलियत में कुछ नहीं होता। केवल और केवल निराशा हमारे हाथ लगती है। हम सपनो को बनाते जाते है फिर वो टूटते जाते है हर दिन ठीक उसी तरह जैसे वो कभी बने थे । हम इसी तरह तड़पते रहते है हर दिन ; अचानक हमे इसकी आदत सी पड़ जाती है और हम एक रास्ता ढूंढने लगते है इससे बाहर निकलने का जिसके कारण हम और तड़पते है। फिर एक दिन तड़प हद पार करने लगती है और वो कर भी देती है उस वक़्त हम सब दरवाजे बंद कर देते है एक गहरी नींद लेने के लिए क्योकि हम थक चुके होते है एक लम्बी लड़ाई से। हम बेफिक्र हो जाते है खुद से और इस वजह से कोई चीज़ हमे फिक्रमंद नहीं कर पाती। उसके बाद हम वो सब करते है जो हमको लगता है की वो सबसे बुरा है। पर जैसे -जैसे हम उस काम को करते जाते है हमे महसूस होता है की वो इतना भी बुरा नहीं था जितना की उसे बदनाम किया गया है। दिन-प्रतिदिन हम झूलते जाते है उन बुराईओं में हाँ उन बुरे कामों में। आश्चर्य की बात नहीं है एक हमे उन कामो में ओर ज्यादा ओर ज्यादा मज़ा आने लगता है। फिर हमे समझ आता की यही तो है वो रास्ता जो हमे मोक्ष की प्राप्ति कराएगा।
वो हमारी लाइफ का एक सुनहरा पल होता है जिसमे दुःख में भी सुख और सुख में भी सुख होता है। हम अपनी मंज़िल के बहुत करीब होते है बहुत ज्यादा करीब , फिर हम सोचते है एक आखिरी बार इस दुखभरी दुनिया को देखने की। पर जैसे ही हम पीछे मुड़ते है सब बदल जाता है क्योकि तब हमे पता चलता है की हम आगे नहीं पीछे चल रहे होते है; मोक्ष के द्वार बंद हो जाते है। य ह सब इतनी जल्दी होता है की पहले तो हमारी साँसे रुकती है फिर तेज़ हो जाती है। हम खुद को सँभालते है और साँसे नार्मल करते है। हम सोचना चाहते है पर कुछ सोच नहीं पाते। अचानक हमारी नज़र उन बंद दरवाज़ों को ढूंढना शुरू कर देती है जो हमने एक लम्बी नींद लेने से पहले बंद किये थे या फिर उस दरवाज़े को जिससे हम अंदर आये थे। और बाकी की हमारी ज़िन्दगी उस एक दरवाज़े को ढूँढते हुए गुजर जाती है जिससे हम बाहार जा सके या फिर जिससे हम अंदर आये थे। शायद हम अब भी उसी दरवाज़े को ढूँढ़ रहे है; यदि नहीं ,तो शायद आप उस दरवाज़े से कभी अंदर ही नहीं आये।
WRITTEN BY SAGAR SHARMA


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