खामोश पसंद आदमी - परिचय
नींद उचट जाने से रात नहीं गुजर पाती है। मैं इस कहावत को हमेशा से नकारता रहा था लेकिन कल यह यथार्थ सच बनकर मेरे सामने खड़ी हो गयी। रात , मैं सपने की वहज से उठ गया था लेकिन कुछ चीज़ें थी जो अधूरी थी और वही चीज़ें मुझे सोने नहीं दे रही थी। रात का अँधेरा गहराता गया और जैसे मेरी नींद खाता गया। फिर अँधेरा ओर गहराता गया और आखिर में उसने इकट्ठा होकर प्रकाश को जन्म दिया यानी भोर होने वाली थीं। सूर्य अपने काम को करने के लिए हमेशा की तरह तैयार था और उसी बीच एक मद्धम सी हवा बड़ी ख़ामोशी से चलनी शुरू हुई और मेरे बिस्तर पर आकर मुझे ऐसा मलहम सा थपेड़ा की मुझे कब नींद आ गयी मुझे पता ही नहीं चला। इसके बाद मैं अगले दिन क़रीब नौ बजे उठा और तुरंत उस जगह पर जाने के लिए तैयार हो गया जो मुझे खामोश पसंद आदमी के पास ले जा सकती थी ; हाँ वही आदमी जिससे ...