खामोश पसंद आदमी -एक मुलाकात
उस दिन मैं अजय से मिलने एक लोकल रेस्टोरेंट आया हुआ था। कोई जगह खाली ना पाकर मैं एक आदमी के पास बैठ गया जिसके बारे में मैनेजर ने बताया था की वो एक खामोश पसंद आदमी है इसलिए तुम शोर मत करना। खैर मज़बूरी में कुछ भी करना पड़ता है , अपनी बात को गुप्त रखने के लिए भाई बहनों को घूस देनी पड़ती है या फिर अंक प्राप्त करने के लिए बेसुरे मास्टर को भी सुरीला कहना पड़ता है और मेरा वहाँ बैठना इसी कड़ी का एक हिस्सा था । मैं उस महाशय के सामने बैठ गया। वो बड़े इत्मीनान से अपने बड़े - बड़े हाथो में चाय का एक छोटा - सा कप पकडे चाय पी रहा था। उसकी मजबूत काठी थी,, लम्बा कद था सीना इतना चौड़ा की एक साँस में शत्रु की सारी प्राणशक्ति खींच ले और भुजाओं से ताकत रह - रह टपक रहीं थी मतलब वो किसी भी तरह एक ख़ामोशी को पसंद करने वाला आदमी नहीं ल...